पटना, बिहार:
**पहले चरण का भूगोल: बदला हुआ नक्शा**
पारंपरिक रूप से, बिहार के चुनावों के पहले चरण में दक्षिण बिहार के मगध और शाहाबाद क्षेत्रों की सीटें शामिल होती थीं। लेकिन इस बार चुनाव आयोग ने रणनीति बदलते हुए पहले चरण में उत्तर बिहार के विशाल इलाके को शामिल किया है। इसमें तिरहुत, मिथिलांचल और कोसी के संभाग शामिल हैं। यह क्षेत्र सामाजिक और राजनीतिक दोनों ही दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील और निर्णायक माना जाता है।
#### **NDA का 'एकीकृत किला': फायदे की स्थिति**
पहले चरण में NDA, विशेष रूप से भाजपा और जनता दल (यूनाइटेड) के मजबूत गढ़ों पर मतदान हुआ है। ये क्षेत्र हैं:
* **मिथिलांचल:** यह क्षेत्र NDA, खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद(यू) और भाजपा का पारंपरिक गढ़ रहा है। यहाँ पर NDA को उच्च जातियों, कोइरी-कुर्मी और महादलित मतदाताओं के बीच मजबूत समर्थन हासिल है। इस चरण में दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर और शिवहर जैसे जिलों की कई सीटें शामिल हैं, जहां से NDA के प्रदर्शन के शानदार रहने की उम्मीद है।
* **तिरहुत का हिस्सा:** तिरहुत के उत्तरी हिस्से, विशेष रूप से पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण के कुछ क्षेत्र, जहां भाजपा का प्रभाव मजबूत है, भी इसी चरण में आते हैं।
इन क्षेत्रों में NDA का वोट बैंक एकजुट और सुसंगठित नजर आ रहा है। पार्टियों के बीच सीट साझाकरण को लेकर हुआ सहमतिपूर्ण समझौता और एक साझा प्रचार अभियान NDA के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है। मतदाताओं में 'सुशासन' और 'केंद्र की योजनाओं' के प्रति सकारात्मक रुझान NDA को मजबूती प्रदान कर रहा है।
**महागठबंधन की 'बंटवारे की चुनौती': नुकसान का जोखिम**
महागठबंधन के लिए पहला चरण एक मिश्रित और चुनौतीपूर्ण परिदृश्य पेश कर रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के पारंपरिक गढ़ दो हिस्सों में बंट गए हैं:
* **पहला हिस्सा: कोसी और पूर्वी तिरहुत** - यह इलाका RJD और महागठबंधन का सबसे मजबूत क्षेत्र माना जाता है। सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, किशनगंज और अररिया जैसे जिलों में YADAV और मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी-खासी आबादी है, जो महागठबंधन का मुख्य वोट बैंक है। इस हिस्से में महागठबंधन को भारी फायदा मिलने की संभावना है।
* **दूसरा हिस्सा: मिथिलांचल और तिरहुत का कुछ हिस्सा** - यही वह जगह है जहां महागठबंधन को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मिथिलांचल में RJD का प्रभाव अपेक्षाकृत कमजोर है, और NDA के मजबूत होने के कारण यहाँ महागठबंधन के लिए सीटें जीतना आसान नहीं होगा।
यह बंटवारा महागठबंधन के लिए एक रणनीतिक नुकसान के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि उनकी ताकत पूरे पहले चरण में समान रूप से फैली हुई नहीं है, बल्कि सिर्फ एक हिस्से तक सीमित है। इससे NDA को उन क्षेत्रों में फायदा मिल सकता है जहां महागठबंधन की पकड़ कमजोर है।
**किसे मिलेगा फायदा, किसे होगा नुकसान?**
* **NDA को फायदा:** पहले चरण के परिणाम NDA के पक्ष में जा सकते हैं। उनके मजबूत गढ़ों में एकजुट मतदान और महागठबंधन के गढ़ों के बंटने से NDA को सीटों के मामले में अच्छी शुरुआत मिल सकती है। यदि NDA मिथिलांचल में अपना दबदबा कायम रखता है और महागठबंधन के गढ़ों में से कुछ सीटें जीतने में सफल हो जाता है, तो यह उनके लिए एक बड़ी रणनीतिक जीत होगी।
* **महागठबंधन को नुकसान:** महागठबंधन का लक्ष्य पहले चरण में अपने मजबूत इलाकों से अधिकतम सीटें जीतकर NDA का पीछा करने की स्थिति में आना है। लेकिन उनके गढ़ों का दो हिस्सों में बंटना इस लक्ष्य में बाधक साबित हो सकता है। अगर वे कोसी और पूर्वी तिरहुत में भारी जीत दर्ज नहीं कर पाते, तो दूसरे चरण में उन पर दबाव बढ़ जाएगा।
**निष्कर्ष: दूसरे चरण की नींव**
बिहार चुनाव का पहला चरण मानो एक चेस गेम की शुरुआत की चाल जैसा है। NDA ने अपने मोहरों को मजबूती से आगे बढ़ाया है, जबकि महागठबंधन के मोहरे दो अलग-अलग मोर्चों पर फंसे हुए हैं। पहले चरण के नतीजे पूरे चुनाव के मिजाज को तय करेंगे। अगर NDA को इसमें बड़ी सफलता मिलती है, तो वह दूसरे चरण के लिए एक जबर्दस्त मोमेंटम बना लेगा। वहीं, महागठबंधन के लिए यह जरूरी होगा कि वह अपने मजबूत इलाकों में शत-प्रतिशत सफलता हासिल करे और NDA के गढ़ों में भी कुछ सेंध लगाने में सफल हो। 11 नवंबर को दूसरे चरण के मतदान और 14 नवंबर को आने वाले परिणामों में ही इस जटिल चुनावी समीकरण का अंतिम हल छिपा है।
