आज यानी 11 जून 2025 को हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा है। इस दिन को देवस्नान पूर्णिमा या स्नान यात्रा के नाम से जाना जाता है। यह तिथि ओडिशा के पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में मनाए जाने वाले विशेष पर्व से जुड़ी है। हर साल इसी दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को भव्य रूप से स्नान कराया जाता है और उसके बाद शुरू होती है उनकी रहस्यमयी ज्वरलीला, जिसे 'अनवसर वास' कहा जाता है।
कैसे होता है महाप्रभु का विशेष स्नान?
देवस्नान पूर्णिमा के दिन महाप्रभु को मंदिर के स्नान मंडप पर लाया जाता है। इसके लिए तैयारियां कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं।
- मंदिर के पवित्र कुएं से 108 कलशों में शीतल और सुगंधित जल भरकर लाया जाता है।
- इस जल से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का जलाभिषेक किया जाता है।
- स्नान क्रिया पूर्ण विधि-विधान और मंत्रोच्चार के साथ की जाती है।
- इसके पश्चात भगवान को गजवेश (हाथी रूप) में सजाया जाता है, जो कि एक अद्भुत दृश्य होता है।
यह पूरे वर्ष का ऐसा पहला अवसर होता है, जब भगवान सिंहासन से बाहर आते हैं और आम भक्तों के सामने स्नान करते हैं।
क्यों बीमार हो जाते हैं भगवान?
मान्यता है कि 108 कलशों से स्नान कराने में प्रयुक्त जल अत्यंत शीतल होता है। इससे भगवान को तेज ज्वर हो जाता है। इसी कारण उन्हें 14 दिनों के लिए विश्राम दिया जाता है, जिसे अनवसर वास कहा जाता है।
अनवसर वास: जब भगवान होते हैं एकांत में
अनवसर वास के दौरान:
- भगवान को आम भक्तों के दर्शन नहीं होते।
- उन्हें साधारण सूती वस्त्र पहनाए जाते हैं।
- सभी आभूषण हटा दिए जाते हैं।
- विशेष वैद्य-सेवा और औषधीय प्रसाद (जैसे पंचकव्य, जड़ी-बूटियों वाला काढ़ा) दिया जाता है।
- यह पूरी अवधि भगवान की ज्वरलीला मानी जाती है।
यह परंपरा दर्शाती है कि ईश्वर भी मानव की भांति बीमार हो सकते हैं और उन्हें विश्राम की आवश्यकता होती है।
नेत्र उत्सव और नवयौवन दर्शन
14 दिन के अनवसर वास के बाद:
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देवस्नान पूर्णिमा का यह पर्व केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि श्रद्धा, सेवा और आस्था का उत्सव है। यह संदेश देता है कि ईश्वर भी विश्राम करते हैं, अस्वस्थ होते हैं और उन्हें सेवा की आवश्यकता होती है। इससे भक्तों में सेवा, त्याग और समर्पण की भावना जागती है।